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औषध संग्रह काल एवं संरक्षण

औषध संग्रह काल :

१. प्रयोज्यांग के अनुसार औषधियों का संग्रह –

(a) आचार्य चरकानुसार, औषधियों का संग्रह

Trick – ” MSMS”
(M – मूल, S – शाखा पत्र )

शिशिर ऋतु – इस ऋतु में मूल का संग्रहण करना चाहिए
वसंत ऋतु – इस ऋतु में शाखा पत्र का संग्रहण करना चाहिए
ग्रीष्म ऋतु – इस ऋतु में मूल का संग्रहण करना चाहिए
वर्षा ऋतु – इस ऋतु में शाखा पत्र का संग्रहण करने का उद्देश्य दिया गया है
शरद ऋतु – इस ऋतु में कंद, त्वक, क्षीर का संग्रहण करना चाहिए
हेमंत ऋतु – हेमंत ऋतु में सार का संग्रहण करना चाहिए

( Trick to learn ऋतु in sequence – शी, व , ग्री, व , श , हे )

(b) आचार्य सुश्रुतानुसार, औषधियों का संग्रह-

Trick – “साफ जपत क्षीर”
( सा – सार, फ – फल, ज – जड़ (मूल), प – पत्र, त – त्वक, क्षीर – क्षीर )

वसन्त ऋतु – इस ऋतु में सार का संग्रहण करना चाहिए

ग्रीष्म ऋतु – इस ऋतु में फल का संग्रहण करना चाहिए

प्रावृड् ऋतु – इस ऋतु में मूल का संग्रहण करना चाहिए

वर्षा ऋतु – इस ऋतु में पत्र का संग्रहण करना चाहिए

शरद ऋतु – इस ऋतु में त्वक का संग्रहण करना चाहिए

हेमन्त ऋतु – इस ऋतु में क्षीर का संग्रहण करना चाहिए

पंचकर्म के अनुसार ऋतु का order अलग होता हैं – ” शी, व , ग्री, व , श , हे ” इस trick को याद रखे पर जब सुश्रुत के अनुसार ऋतु देखेंगे तो इस trick में से शी ( मतलब शिशिर ऋतु को हटा देंगे ) और ग्रीष्म एवम वर्षा ऋतु के बीच में प्रावृड् ऋतु को रखिए ।

२. वीर्य के अनुसार औषधियों का संग्रह

इसका वर्णन आचार्य सुश्रुत ने किया है। उनके अनुसार –
• सौम्य औषधियों का ग्रहण सौम्य ऋतु (विसर्ग काल) में और सौम्य भूमि (हिमालय प्रदेश) में उत्पन्न होने वाली लेनी चाहिए।
• आग्नेय औषधियों का ग्रहण आग्नेय ऋतु (आदान काल) मे और आग्नेय भूमि (विन्ध्य प्रदेश) में उत्पन्न होने वाली लेनी चाहिए।

३. कर्म के अनुसार औषधियों का संग्रह

(a) आचार्य सुश्रुत के अनुसार:

• वमन द्रव्य – अग्नि, वायु और आकाश भूयिष्ठ भूमि में उत्पन्न होने वाली औषधियाँ।
• विरेचन द्रव्य – जल एवं पृथ्वी भूयिष्ठ भूमि में उत्पन्न होने वाली औषधियाँ।
• उभयतोभगहर – उभयभूयिष्ठ भूमि में उत्पन्न होने वाली औषधियाँ।
• संशमन द्रव्य – आकाश भूयिष्ठ भूमि में उत्पन्न होने वाली औषधियाँ।

(b) आचार्य शार्ङ्गधर के अनुसार:

• वमन, विरेचन कर्मों के लिए द्रव्यों का वसंत ऋतु के अंत मे संग्रह करते है।
• अन्य कर्मों के लिए द्रव्यों का संग्रह शरद ऋतु में और सरस अवस्था मे संग्रह करते है।

४. कुछ विशिष्ट औषधियों का संग्रह

• मदनफल – वसंत ऋतु के मध्य में संग्रह करना चाहिए
• क्षार निर्माण – शरद ऋतु में करना चाहिए
• शिलाजतु – ग्रीष्म ऋतु में संग्रह करना चाहिए
• बिल्ब के अतिरिक्त सभी फल पक्व लेने चाहिए।
• मूलक के अतिरिक्त सभी शाक हरित लेने चाहिए।
• हरीतकी और द्राक्षा के अतिरिक्त सभी फल सरस लेने चाहिए।
• पुराने ग्रहण करने वाले द्रव्य – मधु, घृत, गुड़, विडंग, पिप्पली, धान्य।
• नवीन ग्रहण करने वाले द्रव्य – गुडूची, वासा, कुटज, अश्वगंधा, शतावरी
• मूत्र, पुरीष, क्षीर, रक्त, रोम, नख – युवा प्राणी एवं आहार जीर्ण हो जाने पर लेना चाहिए।

औषध द्रव्यों का संरक्षण :

• आचार्य सुश्रुतानुसार, द्रव्य ग्रहण करने के बाद सुखा लेने के बाद उसे कपड़े में बांधकर छत से लटकाकर उसका संरक्षण करे। भेषजागार पूर्व या उत्तर दिशा में बनाना चाहिए।
• आचार्य चरकानुसार, पूर्व या उत्तर दिशा में भेषजागार बनाना चाहिए। कमरे को धूप, वर्षा और ठण्ड से बचाना चाहिए।
• वैज्ञानिक रीति से संरक्षण करने के लिए आधुनिक साधनों और उपकरणों के साथ एक भेषजागार बनाना चाहिए।

द्रव्यों का संरक्षण दो विधियों से होता है (प्रदर्शन हेतु) –
१. शुष्क विधि (dry preservation) : मसी- शोषक पत्र का उपयोग करते है।
२. आर्द्र विधि (wet preservation) : फॉर्मेलिन का उपयोग करते है।

Contributor- Medico Eshika Keshari

1 Comment

  • kanak

    October 3, 2021 - 9:21 pm

    thanks for these easy tricks

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