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#ThirdYear

hikka shwas

हिक्का श्वास चिकित्सा अध्याय ( With Tricks )

इस व्याधि को दुर्जय अर्थात बहुत कठिनता से ठीक होने वाली व्याधि माना गया हैं। हिक्का और श्वास की चिकित्सा न की जाए तो शीघ्र ही प्राण को हर लेने वाला होता हैं। जब किसी अन्य रोग से पीड़ित व्यक्ति जब मरने वाला होता है तो वो हिक्का और श्वास…
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Artavvyapad

Artavavyapad or Menstrual Disorders

Introduction – Artava refers to menstruation or menstrual blood, ovum and also ovarian hormones. Ovum influences fertilization, fetus and also causes certain gynecological disorders. Ashtartavadusti or eight menstrual disorders– Etiology of astartavadusti : According to Kasyapa use of sternutatory drugs during menstruation, consumption of excessive hot substances and use of…
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baal greh

बालग्रह

बालग्रह का शाब्दिक अर्थ है शिशु को ग्रहण करने वाला अर्थात वह व्याधि जो शिशु को ग्रहण करता हैं। बालकों के शरीर में ग्रहों का प्रवेश सामान्य लोगो के द्वारा नहीं देखा जा सकता बल्कि उसे सूक्ष्म दृष्टि से देखा जा सकता हैं। ग्रहों से रक्षा करने के लिए देवव्यपाश्रय…
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nawjat shishu paricharya

नवजात शिशु परिचर्या (Tricks)

शिशु के जन्म होते ही परिचर्या के कर्मो का क्रम अलग अलग आचार्यों ने अलग अलग क्रम वर्णन किया है जो निम्न है : १. चरक संहिता में निम्न ८ परिचर्या के क्रम का वर्णन मिलता है : Trick – “ PSM पर गर्भ की नजर “ P – प्राण…
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कुमारो मे संस्कार

कुमारों में संस्कार (Trick)

संस्कार का महत्त्व गुणों की वृद्धि एवं गुणों में परिवर्तन करना होता हैं। संहिताओं में बाल्यकाल में ८ संस्कारों का वर्णन मिलता हैं। ८ संस्कार निम्न वर्णित हैं जो निम्न है : जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, कर्णवेधन, चूड़ाकर्म, उपनयन, वेदारम्भ संस्कार। Trick – जानी अन्न का चूर्ण ऊपर वही है।…
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kalp

कल्प स्थान ( सारांश )

कल्प स्थान को दिव्य स्थान या विकल्प स्थान भी कहते है। इस स्थान में १५ द्रव्यों का आश्रय बनाकर कुल ६०० विरेचन ( वमन + विरेचन ) योगों का वर्णन किया गया हैं। अध्याय १ – मदनकल्पम् मदनफल – Randia spinosa ( Family – Rubiaceae )मदनफल के पर्याय – मदन,…
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त्रिविध नाडियां एवं षट् चक्र

नाड़ियां असंख्य बतायी गई है, जो हमारे पूर्ण शरीर में व्याप्त होकर, परस्पर सम्बन्धित रूप से कार्यों का निर्वाहण करती हैं । यह नाड़ियां मन एवं कर्म शक्ति का वहन करती है तथा जाल के सदृश संपूर्ण शरीर में ऊर्ध्व:, अध:, तियर्क होकर सभी अंग प्रत्यंगो में व्याप्त होती है…
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