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#SecondYear

विशिष्ट कर्म ( परिभाषा )

कर्म : संयोग च विभाग च कारणं द्रव्यमाश्रितम्।कर्तव्यस्य क्रिया कर्म कर्म नान्दयपेक्षते।। आचार्य चरक के अनुसार जो संयोग और विभाग में अर्थात शरीर मे परिवर्तन में कारण हो , द्रव्य में आश्रित हो और कर्तव्यों के लिए होने वाली क्रिया को कर्म कहा जाता है। कर्म किसी अन्य कर्म की…
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HRUDROG NIDAN

HRUDROG NIDAN (AETIOLOGY OF CARDIOVASCULAR DISEASES)

A) HRUDROG NIDAN :- i.) The heart, itself being a muscular organ, derives its nutrition from rasa, its oxygenfrom rakta and its vital energy from oja. Its movements are controlled by vyanavayu (autonomic nervous system). ii.) Sadhak pitta represents intracellular enzymes in the cells of the heart and helps itto…
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भैषज्य कल्पना (Imp. points & Tricks)

नव्य – पुराण द्रव्य ग्रहण नियम :- नव्य – Trick – " गुवा में कुकु अश्व को शतावरी, सौंफ चरा कर प्रसारित कर रही थी " गुडुची, वासा, कुटज, कुषमांड़, शतावरी, अश्वगंधा, सहचरी, सौंफ (शतपुष्पा), प्रसारणी पुराण – गुड़, शहद, घी, अन्न, बाह्य विडंग, पिप्पली ग्राह्य ग्रहाता नियम :- •…
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औषध संग्रह काल एवं संरक्षण

औषध संग्रह काल : १. प्रयोज्यांग के अनुसार औषधियों का संग्रह – (a) आचार्य चरकानुसार, औषधियों का संग्रह– Trick – ” MSMS”(M – मूल, S – शाखा पत्र ) शिशिर ऋतु – इस ऋतु में मूल का संग्रहण करना चाहिए वसंत ऋतु – इस ऋतु में शाखा पत्र का संग्रहण…
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parad sanskar

पारद संस्कार :

” शोधनं दोषहरणं संस्कारञ्च बलतेजसोअभिवर्धनम्। “ पारद का शोधन करने से पारद दोष मुक्त हो जाता है और पारद संस्कार से दोषो की निवृत्ति के साथ साथ उसमे विशिष्ट गुणोंं की उत्पत्ति और बल और तेज की वृद्धि भी होती है। रसायन कर्म के लिए पारद संस्कार कराने के बाद…
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निघण्टु (Tricks)

निघण्टु शब्द निगमनात् निगन्तव:इति औषमान्यव से बना है। निगमनात् शब्द ज्ञान करने के अर्थ में उपयोग किया गया है। निगम ( निश्चित रूप से ज्ञान ) नि उपसर्ग और गम धातु से बना है जिसमे दोनो पदों का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। निगम प्रत्यक्ष पद वृत्ति है।…
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Important points for DG – II

सूतिकादशमूल – लघुपंचमुल, सहचर, प्रसारणी, गुडूची, विश्वा, मुस्तक (लघुपंचमुल में आने वाले द्रव्य – शालपर्णी, पृष्नपर्णी, बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, गोक्षुर ) वरी – वरी शब्द शतावरी के लिए प्रयोग होता है। वरा – वरा शब्द त्रिफला (हरितकी, आमलकी, विभितकी) के लिए प्रयोग होता है। वर – वर शब्द कुंकुम…
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पारद (Tricks)

• सप्त कंचुक – औपाधिक दोष को ही कंचुक दोष की संज्ञा दी जाती है, कंचुक से तात्पर्य है सर्प की केचुली के आकृति के समान पतली परत का आवरण पारद के ऊपर प्रतीत होता है, यह आवरण पारद की ऊपरी सतह को आवृत किए रहता है । इस आवरण…
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उपरस- शोधन, मारण एवं मात्रा [Video]

रसरत्नसमुच्य के अनुसार गंधक, गैरिक, कासीस, फिटकिरी, हरताल, मन: शिला, अंजन और कंकुष्ठ इन आठ द्रव्यों को उपरस की संज्ञा दी हैं । परंतु रसार्णव ने गंधक, गैरिक, कासीस, फिटकिरी, हरताल, मन: शिला, राजावर्त और कंकुष्ठ को उपरस की संज्ञा दी हैं । रसहृदयतंत्र में गंधक, गैरिक, कासीस, स्फटिका, तालक,…
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रत्न

रत्न (शोधन, मारण, मात्रा) [Video]

रत्नों का सामान्य शोधन:जयन्ती स्वरस/ कुमारी स्वरस/ अम्ल द्रव्य/ तण्डुलीय स्वरस/ क्षार द्रव्य/ गोमूत्र इनमे से किसी 1 स्वरस में दोलायंत्र विधि से 3 घंटे तक स्वेदन या प्रतप्त कर 7 बार बुझा लेने से रत्नों का सामान्य शोधन हो जाता हैं। रत्नों का सामान्य मारण:रत्न के साथ शुद्ध गंधक,…
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