चरक चिकित्सा स्थान में कुल ३० अध्याय है, चिकित्सा का अर्थ है रोग उत्पादक कारणों को शांत करना या उत्पन्न न होने देना । चिकित्सा स्थान की शुरुआत रसायन व वाजीकरण अध्याय से की गई है, रसायन और वाजीकरण चिकित्सा में रसायन चिकित्सा की प्रधानता है, अतः रसायन की व्याख्या प्रथम अध्याय में की गई है ।

रसायन अध्याय और वाजीकरण अध्याय को ४ – ४ पादों में विभक्त कर उनकी व्याख्या की गई है । रसायन अध्याय के ४ पाद निम्न है – अभयामलकीय (), प्राणकामीय (), करप्रचितीय (), आयुर्वेदससमुत्थानिय ()

Trick – आपका

वाजीकरण अध्याय के ४ पाद निम्न है – संयोगशरमुलीय (Sh), आस्तिक्तक्षीरिक (a), माशपर्णभृतीय (m), पुमंजातबलादिक (pu)

Trick- Shampu

चरक संहिता के संपूर्णकर्ता दृढ़बल है, उन्होंने कुल ४१ अध्याय का पूर्ण कर है जिसमे से १७ अध्याय चिकित्सा स्थान के , १२ अध्याय कल्प के और १२ अध्याय सिद्धि स्थान के । चरक पूर्वार्द्ध में व्याधियों से बचने के बारे में वर्णन है, जबकि चरक उत्तरार्द्ध में व्याधियों की चिकित्सा का वर्णन किया गया है ।

अभयामलकीय रसायनपाद

रसायन वाजीकरण की परिभाषा –

जो औषधि स्वस्थ व्यक्ति में प्रशस्त भाव को बढ़ाने वाले होते है, वहीं प्रायः वाजीकरण और रसायन होते है। रसायन का सेवन काल वय के पूर्व में करते है, इसकी २ विधियां होती है , एक कुटीप्रावेशिक और दूसरा वाततपिक रसायन ।

रसायन का सेवन हमेशा पूर्ण रूप से शोधन प्रयोग करने के पश्चात ही करना चाहिए, जब शरीर का पूर्ण रूप से शोधन हो जाए और शरीर में किसी भी प्रकार का कोई भी कष्ट न रह जाए तब रसायन का प्रयोग करना चाहिए। तात्पर्य यह हैं कि जब तक शरीर शुद्ध नहीं हो जाता , तब तक रसायन से कोई भी लाभ नहीं होता ।

रसायन अध्याय के प्रथम पाद जो कि अभयामलकीय है, उसमें ६ योगों का वर्णन किया गया है , जिसको याद करने की

Trick – ” बाबा आंवले का च्यवनप्राश खाकर हरा हरा हो गया ”

प्रथम ब्रह्मरासायन , द्वितीय ब्रह्मरासायन, आमलक रसायन, च्यवनप्राश, हरितक्यादि रसायन , हरितक्यादी योग

प्राणकामीय रसायनपाद

इसमें सर्वप्रथम ग्राम्याहार का वर्णन है, जितने भी अपथ्य द्रव्य होते है सभी ग्राम्याहार होते है ।ग्राम्याहार के सेवन से ही सभी शारीरिक वातादि दोष होते है ।

इस पाद में कुल ३७ योगों का वर्णन है। जिनमे आमलक घृत, आमलकावलेह, आमलक चूर्ण ( यह चूर्ण नहीं है , अवलेह है परंतु इसमें आवलें का चूर्ण प्रयोग होता है इसलिए इसे आमलक चूर्ण से जाना जाता है। ) , विडंगावलेह, नागबला रसायन, भल्लातक क्षीर, भल्लातक तैल, आदि का वर्णन है ।

भल्लातक क्षीर में कुल १००० भिलावा का प्रयोग ५५ दिनों में करना है, प्रथम दिन में १० भिलावा से शुरू करना है और एक एक भिलावा प्रतिदिन बढ़ाते जाए जबतक की १० से ३० तक ना हो जाए । भल्लातक का विधिपूर्वक प्रयोग करने से ऐसा कोई भी कफजन्य रोग या विबंध नही हैं जो शीघ्र ही नष्ट न हो जाए, भल्लातक मेधा और अग्नि को बढ़ाने वाला होता हैं।

करप्रचितीय रसायनपाद

करप्रचितीय का अर्थ है हाथ से संग्रह किया हुआ , इस पाद में सर्वप्रथम रसायन में आंवले को हाथ से तोड़कर प्रयोग करने का विधान हैं । इस पाद में चार मेध्य रसायन का वर्णन है – मंडुकपर्णी का स्वरस, यष्टिमधु का चूर्ण, गुडूची का स्वरस, और शंखपुष्पी का कल्क ।

पिप्पलीवर्धमान रसायन – बलवान पुरुष को कल्क के रूप में पिप्पली का प्रयोग करना चाहिए, इन्हे दस दिन तक प्रतिदिन क्रम से १० पिप्पली बढ़ाते हुए गोदुग्ध के साथ सेवन करना चाहिए । क्वाथ के रूप में ६ पिप्पली से प्रारम्भ करना मध्यम प्रयोग बताया गया है । दुर्बल पुरुष के लिए चूर्ण के रूप में ३ पिप्पली से प्रारम्भ करना हीन प्रयोग बताया गया हैं ।

त्रिफला रसायन – भोजन करने से पहले २ विभीतकी के चूर्ण का प्रयोग, भोजन के बाद ४ आमलकी के चूर्ण का प्रयोग और भोजन के पच जाने के बाद १ हरितकी के चूर्ण का प्रयोग मधु और घृत के साथ एक वर्षतक प्रयोग करना चाहिए ।

आयुर्वेदसमुत्थानीय रसायनपाद

इंद्रोक्त रसायन – रसायन सेवन करने का यह उत्तम कल है, अपने प्रभाव से हिमालय प्रदेश में उत्पन्न होने वाली दिव्य औषधियां इस समय अपने वीर्य , शक्ति से संपन्न होती है । मन: शिला को दिव्य औषधि कहा जाता है, सोम को औषधियों का राजा और पलाश को वृक्षों की रानी कहा जाता है । दिव्य औषधियां ऋषियों के लिए ही हैं, जिन लोगो की इंद्रियां वशीभूत नही हैं, वे व्यक्ति इन तीक्ष्ण प्रभाव वाले द्रव्यों के प्रभाव को सह सकने में हमेशा असमर्थ होते है ।

आचार रसायन – इसको नित्य रसायन भी कहा जाता है , यह अद्रव्यभूत चिकित्सा है , इसमें सभी अद्रव्य है सिर्फ २ द्रव्यों ( क्षीर और दुग्ध ) का प्रयोग किया गया है । हिंसा न करने वाले, सदा दान देने वाले, प्रिय वचन बोलने वाले, सदा घृत व दूध खाने वाले, युक्ति को जानने वाले, क्रोध न करने वाले, इन गुणों से युक्त होकर जो व्यक्ति रसायन का सेवन करता है तो सभी रसायन गुणों को उचित रूप में प्राप्त करता हैं ।

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