यन्त्र के भेद , वाग्भटानुसार –
Trick-
"S3 NAT"
Meaning-
• स्वस्तिक यन्त्र –

स्वस्तिक यंत्र वह होते है जो आकृति में मध्य में स्वस्तिक के जैसे होते है। इन यंत्रो की लंबाई अठारह अंगुल होती है। यह प्रायः लोह धातु से बनी होती है। इसका प्रयोग हड्डियों में प्रविष्ट हुए शाल्यो को निकालने में प्रयुक्त होते है। वैद्यको ने आधुनिक शल्यशास्त्र के अनुसार इनका समावेश फोर्सेप्स (forceps) में किया है। इस यंत्र का आगे का भाग मसूर के दाने के आकार का होता है और कण्ठ कील से जुड़े होते है। इनका मूल भाग अंकुश की तरह मुड़ा होता है। स्वस्तिक यंत्रो की संख्या 24 है। इनका नामकरण भिन्न- भिन्न प्राणियों के नाम के आधार पर रखा गया है। विविध प्रकार के स्वस्तिक यंत्र – सिंघमुख, व्याघ्रमुख, भुजंगमुख, मकरमुख, ककरमुख, श्येनमुख आदि।
• संदंश यन्त्र –

संदंश वे यन्त्र होते हैं जो मूल में कीलबद्ध और अग्रभाग से खुले होते हैं। सन्दंश यंत्र वक्र आकर और दो भुजाओं वाला यंत्र है। सन्दंश यंत्र सोलह अंगुल लंबे होते है। इनका उपयोग त्वचा, मांस, सिर और स्नायु में प्रविष्टि शल्यो को निकलने के लिए प्रयुक्त होते है। इनका समावेश भी आधुनिक शल्यशास्त्र के अनुसार फोर्सेप्स (forceps) के अन्तर्गत किया गया है। यह दो प्रकार का होता है – कीलबद्ध (सनिबन्धन) एवं विमुक्ताग्र (निर्निबन्धन)।
• शलाका यन्त्र –

It is a set of instruments with rod like shape. समान्यतः शलाका यंत्र विभिन्न लंबाई एवं गोलाई वाली होती है (कार्यो के अनुसार )। इसका अभ्यांतर भाग नाड़ी यंत्र की तरह सुषिर नहीं होती है। शलाका यंत्र के प्रकार – गांडूपदमुखी शलाका, सर्पफड़मुखी शलाका, शरपंखमुखी शलाका, बडिशमुख शलाका, नासार्बुदहरण शलाका, अंजन शलाका, आदि।
• नाड़ी यन्त्र –

नाड़ी यंत्र आकृति में खोखली होती है (tube type की आकृति होती है)। इनका समावेश आधुनिक शल्यशास्त्र में tubular instruments तथा speculum और scoop के अंतर्गत किया जाता है। इसका प्रयोग स्रोतों में प्रविष्ट शल्यो का दर्शन कर्म , निरीक्षण के लिए, आचूषणार्थ एवं उनको निकालने के लिए किया जाता है। इन यंत्रो को शरीर मे उपस्थित स्रोतों के लंबाई और परिमाण के अनुसार ही बनाना चाहिए। आचार्य सुश्रुत ने नाड़ी यंत्रों की संख्या 20 बताई है।
• अनुयन्त्र –
आचार्य सुश्रुत ने अनुयन्त्र को उपयंत्र कहा है। यंत्रो से सादृश्य यंत्र को उपयंत्र कहते है। यंत्रो के अभाव होने पर उपयंत्र का प्रयोग उस कर्म को करने के लिए किया जाता है। उन्नीस अनुयन्त्र इस प्रकार है – अयस्कान्त, रज्जु, वस्त्र, अश्म (पत्थर), मुद्गर, वध्र, आंत्र, जिव्हा, बाल, वृक्षशाखा, नख, मुख, दाँत, काल, पाक, हस्त, पाद, भय, हर्ष।
• ताल यन्त्र –

इसकी आकृति मछली के मुहगुहा में स्तिथ तालु के सदृश्य होती है। आकृति में मत्स्यतालसदृश निम्न मध्यप्रदेश वाले होते हैं। यह बारह अंगुल लंबी होती है। इसका उपयोग कर्णनाड़ी के शाल्यो को निकालने में किया जाता है (Useful for removing foreign bodies from the orifice of ears) एवं इसका उपयोग नासादि सुषिर (खोखली) स्थानों में किया जाता है। इसका सामंजस्य आधुनिक शल्यशास्त्र के अनुसार स्कूप (scoop) से किया जाता है। यह दो प्रकार की होती है – एकतालक (single scoop) एवं द्वितालक (double scoop)।
Trick for अनुयन्त्र –
पाक का काल था वह भय भीत था, उसने वस्त्र में चुम्बक, पत्थर, हथौड़ा, चर्मपट, वृक्षशाखा, को रज्जु से बांद दिया फिर हर्ष हुआ।
बाल, दंत, जिह्वा, मुख, आंत की रस्सी, नख, हस्त तल, पाद तल
Meaning–
पाक, काल, भय, वस्त्र, चुंबक ( अयस्कांत ), पत्थर ( अश्म ), हथौड़ा ( मुद्गर), चर्मपट ( वध्र ) , वृक्षशाखा, रज्जु, हर्ष, बाल, दंत, जिह्वा, मुख, आँत की रस्सी, नख, हस्त ताल, पाद तल
Contributor- Medico Eshika Keshari
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