इस व्याधि को दुर्जय अर्थात बहुत कठिनता से ठीक होने वाली व्याधि माना गया हैं। हिक्का और श्वास की चिकित्सा न की जाए तो शीघ्र ही प्राण को हर लेने वाला होता हैं। जब किसी अन्य रोग से पीड़ित व्यक्ति जब मरने वाला होता है तो वो हिक्का और श्वास अवश्य ही होती हैं।
हिक्का और श्वास दोनो ही पित्त स्थान से उत्पन्न होती है और कफज और वातज व्याधि हैं। अतः हिक्का और श्वास व्याधि का मूल, स्थान और निदान एक जैसा होने के कारण इनकी चिकित्सा भी एक जैसी होती है। इन व्याधियों को आशीविष (जिस प्रकार क्रोधित साँप मृत्यु का कारण होता है उसी प्रकार ये व्याधि भी मृत्यु का कारण होते है) माना हैं।
(आशीविष – हिक्का, श्वास, कफज विसर्प)
हिक्का का पूर्वरूप – उदर में आटोप, मुख में कषाय रस की अनुभूति, कंठ और वक्ष प्रदेश में गुरुता।
श्वास का पूर्वरूप – उदर में आनाह, हृदय एवं पसलियों में पीड़ा, प्राण वायु का विलोम हो जाना।
हिक्का और श्वास दोनों ही पाँच – पाँच प्रकार के होते हैं जो निम्न वर्णित हैं :
हिक्का के पाँच प्रकार –
१. महा हिक्का – ये महामूल, महावेग, महाशब्द, महाबल वाली होती हैं। ये प्राण हरने वाली होती है। इसमें कंठ प्रदेश से ऊंचे शब्द को उत्पन्न करने वाली होती है।
२. गंभीरा हिक्का – नाभि या pakvashya से उत्पन्न होता। रोगी के बल और मन का व्यापार नष्ट हो जाता है। ये रोगी के प्राणों को नष्ट करने वाला होता हैं।
३. व्यापेता हिक्का – अन्न का पाचन होने के बाद हिक्का का वेग बढ़ जाता है। ये जत्रू मूल से उत्पन्न होने वाला होता है। ये प्राणों का नाश करने वाला होता हैं।
४. क्षुद्र हिक्का – इसकी उत्पत्ति हृदय, क्लोम, कंठ एवं तालु से होती हैं। जिन कारणों से इसकी उत्पत्ति होती हैं उन्हीं से इसकी शांति भी होती हैं।
५. अन्नाजा हिक्का – इसमें मंद गति की हिक्का उत्पन्न होती है। ये जल पीने से या भोजन करने के बाद ये हिक्का स्वतः शांत हो जाती हैं।
श्वास के पाँच प्रकार –
१. महा श्वास – इससे पीड़ित रोगी मतवाले सांड की तरह ऊंचे शब्द से श्वास लेता हैं। इससे पीड़ित होने पर रोगी शीघ्र ही मर जाता हैं।
२. ऊर्ध्व श्वास – इससे पीड़ित व्यक्ति श्वास ऊपर की ओर लेता है लेकिन उसके बाद नीचे नहीं आता है। इससे पीड़ित रोगी शीघ्र ही मर जाता हैं।
३. छिन्न श्वास – इससे पीड़ित रोगी रुक रुक कर श्वास लेता हैं। इसमें व्यक्ति के मर्म स्थान काट दिए जाने के समान पीड़ित रहता हैं। इससे पीड़ित रोगी मर जाता हैं।
४. तमक श्वास – इससे पीड़ित रोगी के गले में घरघराहट उत्पन्न होता हैं। जब kaf का नाश होता है तो एक मुहूर्त के लिए सुख की अनुभूति होती हैं। इसके दो प्रकार होते हैं; प्रतमक एवं संतमक
प्रतमक श्वास : जब ज्वर और मूर्च्छा दोनों उपद्रव रूप में मिलते हैं। संतमक श्वास : शीतल आहार विहार से शांत होता हैं।
५. क्षुद्र श्वास – इसमें रोगी के इंद्रियों में किसी प्रकार की व्यथा नहीं होती है और ये साध्य व्याधि होती हैं।
हिक्का एवं श्वास की चिकित्सा सूत्र :
सर्वप्रथम रोगी का स्नेहन और स्वेदन करना चाहिए और उसके बाद कफकारक स्निग्ध द्रव्यों (जो वातकारक न हो) को खिलाकर वमन करना चाहिए। वमन करने के बाद धूमपान करना चाहिए ताकि जो दोष स्रोतों में लीन हो गए हो वो नष्ट हो जाए।
हिक्का श्वास से पीड़ित रोगी दो प्रकार के होते हैं – एक बलवान और दूसरा दुर्बल; एक जिनमे कफ की अधिकता होती हैं और दूसरा जिनमे वायु की अधिकता होती हैं। कफ की अधिकता हो और वह रोगी भी बलवान हो तो उनमें संशोधन कर्म कराते हैं। यदि वात की अधिकता हो और रोगी दुर्बल हो तो वतनाशक औषधियों का प्रयोग करते हुए तर्पण क्रिया करनी चाहिए।
कुछ हिक्का श्वास नाशक योग निम्न हैं –
• रास्नादि यूष
• मातुलुंड्॰गादि यूष
• मुद्ग यूष
• हिंड्.ग्वादि यवागू
• दशमूलादि यवागू
• सौवर्चलादि चूर्ण
• मुक्तादि चूर्ण
• शट्यादि चूर्ण
• दशमूलादि घृत
• तेजोवत्यादि घृत
• मन: शिलादि घृत
(Trick : मन तेज़ी से शत से मुक्त हुआ
मन – मन: शिलादि घृत, तेज़ी – तेजोवत्यादि घृत, शत – शट्यादि चूर्ण, मुक्त – मुक्तादि चूर्ण )
Contributor- Medico Eshika Keshari
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