योनिव्यापद वर्णन चरक संहिता के चिकित्सा स्थान ३० में किया गया हैं, सुश्रुत संहिता एवं अष्टांग संग्रह के उत्तरतंत्र के ३८ में किया गया हैं, अष्टांग हृदय के उत्तरतंत्र के ३३ में किया गया हैं।
योनिव्यापद की संख्या :
सभी आचार्यों ने योनिव्यपद की संख्या २० मानी हैं।
१. चरक संहिता के अनुसार योनिव्यापद की संख्या –
वाताज – ११
पित्तज – ३
कफज – १
सन्निपतज – १
वात पित्तज – २
वात कफज – २
२. सुश्रुत संहिता के अनुसार योनिव्यापद की संख्या –
वातज – ५
पित्तज – ५
कफज – ५
सन्निपातज – ५
३. अष्टांग हृदय के अनुसार योनिव्यापद की संख्या –
वाताज – ११
पित्तज – २
कफज – १
सन्निपतज – १
वात पित्तज – २
वात कफज – २
कृमिज – १
आचार्य वाग्भट ने शब्द भेद से चरक का ही अनुसरण किया हैं केवल अचरणा के स्थान पर विप्लुता, अर्जस्का के स्थान पर लोहितक्षया, पुत्रघ्नि के स्थान पर जातघ्नी माना हैं।
योनिव्यापद के भेद की tricks :
१. आचार्य चरक के अनुसार –
अ. वातज (११)
Trick : तीनों चरणों के मध्य दोनों योनि दोनों मुखों में स्थित उदान वात पुत्र को शुष्क करती हैं।
तीनों चरणों – अचरणा, अतिचरणा, प्रक्चरणा
दोनो योनि – षण्ड योनि, महायोनि
दोनो मुखों – अंतर्मुखी, सूचीमुखी
उदान – उदावर्तनी
वायु – वातिकी
पुत्र – पुत्रघ्नी
शुष्क – शुष्का
आ. पित्तज (३)
Trick – अरे पित्त की रक्त योनि
अरे – अर्जस्का
पित्त – पित्तला
रक्त योनि – रक्त योनि
इ. कफज (१)
श्लेष्मकी
ई. सन्निपतज (१)
सन्निपतिकी
उ. वात पित्तज (२)
Trick – VP की परि वमन करती हैं।
परि – परिप्लुता
वमन – वामिनी
ऊ. वात कफज (२)
Trick – VK के कर्ण ऊपर हैं।
कर्ण – कर्णिनी
ऊपर – उपप्लुता
२. आचार्य सुश्रुत के अनुसार –
अ. वातज (५)
Trick – उदार बन्ध्या परि विपुल से वात करो।
उदार – उदावर्ता
बन्ध्या – बन्ध्या
परि – परिप्लुता
विपुल – विप्लुता
वात – वातला
आ. पित्तज (५)
Trick – पिता पुत्र को रुधिर वमन से प्रस्त करता हैं।
पिता – पित्तला
पुत्र – पुत्रघ्नि
रुधिर – लोहितक्षरा
वमन – वामिनि
प्रस्त – प्रस्त्रांसिनी
इ. कफज (५)
Trick – कर्ण के दिनो चरणों से श्लेष्मा अत्यंदित होती हैं।
कर्ण – कर्णिनी
दोनों चरणों – अचरणा, अतिचरणा
श्लेष्मा – श्लेष्मला
अत्यनन्दित – अत्यनन्दा
ई. सन्नीपतज (५)
Trick – सभी षड़े महकते फलों की सूची बनाओ
सभी – सर्वजा
षड़े – षण्डी
महकते – महती
फलों – फलिनी
सूची – सूचीवक्त्रा
योनिव्यापद के उपद्रव:
Trick – GAP
G – गुल्म
A – अर्श
P – प्रदर
बन्ध्यत्व, संतान का विनाश, वातिक व्याधियां
Important Key Points-
Trick – उदार षण्डी बन्ध्या के पुत्र का KAND
उदावर्ता – K – कृच्छार्तव
षण्डी – A – अनार्तव
बन्ध्या – N – नष्टार्तव
पुत्रघ्नि – D – दुष्टार्तव
योनिव्यापद की चिकित्सा :
चिकित्सा सुत्र –
वातज – स्नेहन, स्वेदन, बस्ती कर्म
पित्तज – रक्तपित्त नाशक शीतल क्रिया
कफज – रुक्ष एवं उष्ण चिकित्सा प्रयोग
चिकित्सा योग –
वातज – बला तैल, सैंधवादि तैल, पीपलल्याद तैल, गुदुच्याद तैल, कश्मर्यादि तैल
पित्तज – बृहत शतावरी घृत
कफज – पीपलयादी वर्ति, अर्क वर्ति, उदुंबर तैल
दोषानुसार उत्तरबस्ती :
वातज – तैल और अम्ल द्रव्यों के क्वाथ या स्वरस बस्ति
पित्तज – मधुर द्रव्य से सिद्ध क्वाथ और दूध दोनों मिलाकर बस्ति
कफज – गोमूत्र के साथ कटुप्रधान द्रव्यों की बस्ति
दोषानुसार चिकित्सा :
वातज – हिंस्त्रा कल्क (हंसपद के मूल का काल्क)
पित्तज – पंच वल्कल का कल्क
कफज – श्यामादि औषधियों के कल्क धारण
Contributor- Medico Eshika Keshari