योगा के बारे में निश्चित रूप से सुना तो सबने होगा हि और कभी न कभी अभ्यास भी करा होगा, परंतु क्या आप जानते है कि जिसे आप योगा समझते है वह योगा है ही नहीं परंतु योगा का एक अंग है । तो आइए जानते है की असल मे योगा है क्या ??

योग का शाब्दिक अर्थ ‘जुड़ना’ होता है। योग अभ्यास मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसके अभ्यास से बहुत से रोगों का निवारण भी किया जा सकता है। योग अभ्यास से मानसिक तनाव भी दूर होता है।
प्रति वर्ष 21 जून विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष स्वास्थ्य पर योग का महत्व दर्शाने और जागरूकता बढ़ाने के लिए इस दिन योग का अभ्यास किया जाता है।

हर व्यक्ति को प्रातः काल जल्दी उठकर योग अभ्यास करना चाहिए। योग अभ्यास खाली पेट ही किया जाता है। उठने के बाद मल एवं मूत्र का त्याग करना चाहिए और जल का सेवन करना चाहिए , इसके बाद ही योग अभ्यास करना चाहिए। योग अभ्यास शांत वातावरण में एवं पूरा ध्यान लगाकर ही करना चाहिए। योग अभ्यास के अंत मे हमेशा शवासन करते है (relaxing pose)।

आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाए तो योग और आसन दोनो एक दूसरे से भिन्न है। आसन अष्टांग योग का एक अंग होता है (अष्टांग योग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान, समाधि)। आयुर्वेद के अनुसार योग अभ्यास बहुत ही मुश्किल होता है। आजकल जो योग हम लोग करते है वो दरअसल आसन और प्राणायाम है।

आसन का अभ्यास करने से शरीर मे शैथिल्यता (flexibility) उतपन्न होती है। आसन असंख्य होते है।

सूर्य नमस्कार :

सूर्य नमस्कार को योगासन में सवश्रेष्ट माना जाता है क्योंकि सूर्य नमस्कार में लगभग सारे प्रकार के आसनो का समावेश है और ये अकेले ही सम्पूर्ण आसनो का लाभ पहुँचाने का सामर्थ्य रखता है। सूर्य नमस्कार में सूर्य शब्द सूर्य नक्षत्र का उल्लेख करता है जो कि तेज, स्वास्थ्य और आयु का प्रतीक होता है। सूर्य नमस्कार अभ्यास का सबसे उचित समय प्रातः काल सूर्योदय के समय होता है।
सूर्य नमस्कार में १२ अवस्थाएं होती है जिनमे प्रत्येक का अपना महत्व और लाभ होता है।

१. प्रथमावस्था – प्रणामासन / नमस्कारासन

विधि – आँखे बंद करके और दोनों हाथों को जोड़कर सूर्य की तरफ मुख करके, पैरों के अंगूठे मिलाकर आसन करना चाहिए।

२. द्वितियावस्था – हास्तोत्थानासन

विधि – श्वास अंदर लेकर और दोनों हाथों को सिर से ऊपर ले जाकर पीछे की ओर झुकें।

३. तृतीयावस्था – पादहस्तासन

विधि – कमर को सीधा करके हाथो और कमर को पैरों की ओर झुकाते हुए घुटनों को सीधा रखना चाहिए।

४. चतुर्थावस्था – अश्वसंचालनासन

विधि – अब अपने हाथों को पैरो के बगल में रखकर और श्वास अंदर लेते हुए बाएं पैर को पीछे करके और दाँए पैर के घुटनें को मोड़कर ये आसन करें।

५. पंचमवस्था – पर्वतासन

विधि – अब धीरे धेरे श्वास अंदर लेते हुए दाँए पैर को भी बाएं पैर के साथ पीछे रखकर कमर को ऊपर उठाएं, घुटनो को मोड़े नहीं और सिर को हाथो के बीच मे रखे।

६. षष्ठमावस्था – साष्टाङ्ग प्रणाम

विधि – अब दोनों हाथों, चिबुक (chin) , वक्ष (chest) और घुटनों को जमीन पर लगाते है और कमर से नाभि तक का हिस्सा जमीन से ऊपर उठा होना चाहिये।

७. सप्तमावस्था – भुजङ्गासन

विधि – श्वास अंदर लेते हुए कमर को जमीन पर सटाये, हाथों को सीधा जमीन पर आगे की ओर रखे और सिर को ऊपर उठाएं।

८. अष्टमावस्था – पर्वतासन

विधि – भुजङ्गासन की स्तिथि से हल्के हल्के श्वास को बाहर छोड़ते हुए पर्वतासन करना चाहिए ।

९. नवमावस्था – अश्वसंचालनासन

पर्वतासन की स्तिथि से हल्के हल्के बाएं पैर को आगे लाए , दोनो हाथों को बीच में रखना चाहिए , और श्वास अंदर की ओर लेना चाहिए ।

१०. दशमावस्था – पादहस्तासन

अश्वसंचालनासन की स्थिति से, श्वास को बाहर छोड़ते हुए, पादहस्तासन स्थिति को धारण करना चाहिए ।

११. एकदशावस्था – हस्तोत्थानासन

पादहस्तासन की स्थिति से, श्वास को अंदर लेकर की हस्तोत्थानासन स्थिति धारण करे ।

१२. द्वादशावस्था – प्रणामासन

हस्तोत्थानासन की स्थिति से, श्वास को बाहर छोड़ते हुए प्रणामासन धारण करे ।

Contributor- Anita Kesarwani

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