नव्य – पुराण द्रव्य ग्रहण नियम :-
नव्य –
Trick –
" गुवा में कुकु अश्व को शतावरी, सौंफ चरा कर प्रसारित कर रही थी "
गुडुची, वासा, कुटज, कुषमांड़, शतावरी, अश्वगंधा, सहचरी, सौंफ (शतपुष्पा), प्रसारणी
पुराण –
गुड़, शहद, घी, अन्न, बाह्य विडंग, पिप्पली
ग्राह्य ग्रहाता नियम :-
• सभी द्रव्यों को ताजा ग्रहण करना चाहिए
• एक वर्ष बाद औषधी निरर्थक हो जाती है
• ६ द्रव्यों ( गुड़, शहद, घी, अन्न, बाह्य विडंग, पिप्पली ) को पुराना ग्रहण करना चाहिए
• जो द्रव्य आद्र व नूतन हो वह सर्वश्रेष्ठ होता है
Some important points :-
१) १ बिंदु की मात्रा क्या है ?
जब तर्जनी अंगुली के दो पर्वों को द्रव में डुबोकर निकालने पर जितनी मात्रा बूंद गिरती है उसे १ बिंदु कहते है ।
२) भैषज्य कल्पना के आधारभूत सिद्धांत क्या है ?
Trick – PRMPRA ( pronounce it as – परंपरा )
परिभाषा (PR) , मान (M) , पंचकषाय कल्पना (P) , रस – गुण – वीर्य – वीपाक तथा प्रभाव (R) , अनुक्त या विशेषोक्त – ग्रहण (A)
३) कुडव पात्र क्या होता है ?
४ अंगुल चौड़ा , ५ अंगुल ऊंचा एवं ४ गहरे पात्र को कुडव पात्र कहते है, इस कुडव पात्र में जितना भी द्रव्य आता है उसे १ कुडव मान कहते है ।
४) चरक का पोत वमान वंशी या ध्वंशी से प्रारंभ होता है , परंतु शारंगधर का परमाणु से शुरू होता है ।
५) पंचविध कषाय कल्पना में मुख्य आधार कौनसी कल्पना का है ?
पंचविध कषाय कल्पना में मुख्य आधार स्वरस और कल्क कल्पना का है
६) भैषज्य कल्पना का मूल ग्रंथ कौनसा है एवं उसका काल क्या है ?
भैषज्य कल्पना का मूल ग्रंथ शारंगधर संहिता है जिसकी रचना शारंगधर मिश्र ने की हैं , इस संहिता में कुल ३२ अध्याय है जिसका विभाग पूर्व खण्ड ( ७ अध्याय ) , मध्य खण्ड ( १२ अध्याय ) , उत्तर खण्ड ( १३ अध्याय ) के रूप मे किया गया है , इसके मध्य खण्ड में भैषज्य का वर्णन मिलता है ।
७) अमिक्षा किसे कहते है ?
उबले हुए फटे दूध को अमिक्षा कहते है ।
८) अनुपान एवं सहपान क्या है ?
जो औषधि सेवनुपरांत दिया जाता है वह अनुपान होता है और वह द्रव्य जो औषधि के साथ दी जाती है उसे अनुपान कहा जाता है ।
” सवीर्यतावधि ” ( Expiry date)
• स्वरस , कल्क की सवीर्यतावधि – 24 hour (According to ancient as well as according to contemprary)
• चूर्ण की सवीर्यतावधि – 2 month (According to ancient) and 2 year (According to contemprary)
• घृत की सवीर्यतावधि – 16 month (According to ancient) and 2 year (According to contemprary)
• तैल की सवीर्यतावधि – 16 month (According to ancient) and 3 year (According to contemprary)
• वटी की सवीर्यतावधि – 1 year (According to ancient) and 3 year for herbal tablets and रस, धातु, उपधातु से निर्मित वटी की 5 years (According to contemprary)
• अवलेह की सवीर्यतावधि – 1 year (According to ancient) and 3 year (According to contemprary)
• आसव – अरिष्ट की सवीर्यतावधि – No Expiry at all
• रस औषधि की सवीर्यतावधि – No Expiry at all
• फणित की सवीर्यतावधि – 1 year (According to ancient) and 3 year (According to contemprary)
औषध द्रव्यों की विशेषता :-
• औषधियां प्रभूत मात्रा में उपलब्ध होनी चाहिए
• एक औषधि में अनेक प्रकार की कल्पना की योग्यता होना
• औषधियों का रस गुण वीर्य वीपाक़ आदि से युक्त होने पर ही भैषज्य निर्माण के लिए लिया जाना चाहिए
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