बालग्रह का शाब्दिक अर्थ है शिशु को ग्रहण करने वाला अर्थात वह व्याधि जो शिशु को ग्रहण करता हैं। बालकों के शरीर में ग्रहों का प्रवेश सामान्य लोगो के द्वारा नहीं देखा जा सकता बल्कि उसे सूक्ष्म दृष्टि से देखा जा सकता हैं। ग्रहों से रक्षा करने के लिए देवव्यपाश्रय एवं युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा करनी चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव जी और पार्वती जी के द्वारा बाल ग्रहों का निर्माण हुआ ताकि उनके पुत्र की रक्षा कर सके।
बालग्रह के पूर्वरूप :
ग्रह रोग से बालक में सदा रोना एवं ज्वर बालग्रह का पूर्वरूप होता हैं।
बालग्रह के सामान्य लक्षण :
बालग्रह के निम्न लक्षण संहिताओं में वर्णित हैं :
• सदा रोना
• संज्ञा नाश
• जृम्भा
• दृष्टि ऊपर की ओर
• मुख से फेन का उद्गम
• स्तन पान नहीं करता हैं
• दाँतो का चबाना
• दुर्बलता
• दीनता
• शरीर के अंगों की मलिनता
• मल आमयुक्त
• कुंजन
• खुद को और धात्री को नाखून मारना
• शरीर के अंगों में शोथ
• क्रूरता
• रात्रि जागरण
• मछली, खटमल आदि जैसी गंध
बालग्रहो के भेद एवं संख्या :
• आचार्य सुश्रुत के अनुसार ग्रहों की संख्या एवं भेद –
१. पुरुष ग्रह :
स्कन्द ग्रह, स्कन्द अपस्मार ग्रह, नैगमेष या पितृ ग्रह
२. स्त्री ग्रह :
शकुनी ग्रह, पूतना ग्रह, शीत पूतना ग्रह, अन्ध पूतना ग्रह, मुखमण्डिका ग्रह, रेवती ग्रह
• आचार्य वाग्भट के अनुसार ग्रहों की संख्या एवं भेद –
१. पुरुष ग्रह :
स्कन्द ग्रह, स्कन्द अपस्मार ग्रह, नैगमेष ग्रह, श्वग्रह, पितृ ग्रह
२. स्त्री ग्रह :
शकुनी ग्रह, पूतना ग्रह, शीत पूतना ग्रह, अदृष्ट पूतना ग्रह, रेवती ग्रह, शुष्क रेवती ग्रह, मुखमण्डिका ग्रह
बालग्रहों के पृथक पृथक लक्षण :
१. स्कन्द ग्रह :
शरीर से रुधिर जैसी गंध, स्तनपान से द्वेष, लाल नेत्र, शरीर के किसी एक भाग का चेष्टा विहीन होना, पलकों में जकड़न, मुख की वक्रता, कठिन मल त्याग, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकित्सा से hemiplegia से किया जाता हैं।
२. स्कन्द अपस्मार ग्रह :
कभी संज्ञा हीन होना और कभी संज्ञा युक्त होना, शरीर से पूय एवं रक्त की गंध, ऊपर की ओर देखना, जृम्भा लेते हुए मुख से फेनोदग्म, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकित्सा से epilepsy से किया जाता हैं।
३. नैगमेष ग्रह :
ऊपर की तरफ देखने, मूर्छा, एक नेत्र में शोथ, बकरे के समान गंध का आना, मुख से झाग का गिरना, ज्वर, मुट्ठी बांधना, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकित्सा के meningitis से करते हैं।
४. श्वग्रह :
कम्पन, स्वेद का आना, कुत्ते के समान चिल्लाना, जिव्हा को काटना, गले में शब्द उत्पन्न होना, नेत्रों का बंद होना, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकिसा के rabies से करते हैं।
५. पितृग्रह :
सहसा रोना, ज्वर, कास, वमन, शव के समान गंध का आना, मुट्ठी बांधना, शरीर मे जड़ता एवं विवर्णता, नेत्र से स्त्राव, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकिसा के pneumonia से करते हैं।
६. पूतना ग्रह :
अतिसार, कौए के समान गंध, तिरछा देखकर हँसता हैं, निन्द्रनाश, अंगों का ढीला पड़ना, अत्यधिक तृष्णा, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकित्सा के diarrhea से किया जाता हैं।
७. रेवती ग्रह :
मुखपाक, शरीर का वर्ण पाण्डु होना, हरे रंग का मल, बकरे जैसी गंध, मुख का वर्ण लाल, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकिसा के pernicious anemia से करते हैं।
८. शुष्क रेवती ग्रह :
उदर पर ग्रंथि एवं सिराजाल का दिखना, विवर्णता, हरे रंग का मल, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकिसा के intra abdominal tuberculosis से करते हैं।
९. मुख मण्डिका ग्रह :
बह्वशी (अत्यधिक खाना), उदर पर काले या नीले वर्ण की सिराये, मूत्र जैसी गंध, बेचैनी, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकिसा के cirrhosis से करते हैं।
१०. शकुनी ग्रह :
मुखपाक, गुदपाक, मांस जैसी गंध, व्रण, स्फोट, आदि।
इसका सामंजस्य आधुनिक चिकिसा के impetigo से करते हैं।
बालग्रह चिकिसा :
बालग्रह में देवव्यपाश्रय चिकिसा ( मंत्र, बलि, उपवास, होम, प्रायश्चित, आदि ) एवं युक्तिव्यापाश्रय चिकिसा ( आहार और औषध ) से करते हैं।
Contributor- Medico Eshika Keshari