” शोधनं दोषहरणं संस्कारञ्च बलतेजसोअभिवर्धनम्। “

पारद का शोधन करने से पारद दोष मुक्त हो जाता है और पारद संस्कार से दोषो की निवृत्ति के साथ साथ उसमे विशिष्ट गुणोंं की उत्पत्ति और बल और तेज की वृद्धि भी होती है। रसायन कर्म के लिए पारद संस्कार कराने के बाद ही उपयोग किया जाता है।

पारद संस्कार की संख्या :

भिन्न भिन्न आचार्यो के अनुसार संस्कार की संख्या भिन्न भिन्न बताई गई है। कुछ ने इसकी संख्या १८ बताई है, कुछ ने १९ और कुछ ने ८। पारद के १८ संस्कार निम्न है :
स्वेदन, मर्दन, मूर्च्छन, उत्थापन, पातन, रोधन, नियमन, दीपन, ग्रासमान, चारणा, गर्भद्रुति, बाह्यद्रुति, जारणा, रंजन, सारण, क्रामण, वेध और भक्षण।
पारद मे रासायनिक गुण लाने के लिए आठ संस्कार करने के बाद भी उपयोग में लिया जा सकता है। अष्टविध संस्कार में स्वेदन से पातन तक कि प्रक्रिया से सर्व दोषो का नाश हो जाता है और रोधन, नियमन और दीपन से बल और तेज की वृद्धि होती है।
Note – पारद संस्कार के बाद पारद अपनी मात्रा से १/३ ही बचता है और पूरी प्रक्रिया में समय उतना ही लगता है इसलिए पारद संस्कार हेतु पारद की मात्रा कम से कम आधा पल लेना चाहिये।

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स्वेदन संस्कार :

Trick - " RUSPAM चित्रा "
R- राई; S- सैंधव, सोंठ; P- पीपल; A- अदरक; M- मरिच, मूली; चित्रा - चित्रकमूल।

स्वेदन संस्कार से पारद का मल शिथिल हो जाता है। इस विधि में ऊपर बताये गए द्रव्यों को पारद का १६वॉ भाग लेकर कल्क बनाकर कांजी मे मिला दिया जाता है और पारद को पोट्टली मे बांधकर दोलयंत्र विधि से मृदु अग्नि द्वारा 3 दिन तक पकाया जाता है।

मर्दन संस्कार :

Trick - " घर मे ऊन की ईट पर गुड़, लवण और राई। "
घर - गृहधूम, ऊन- जला हुआ ऊन, ईट- पुरानी ईंट का चूर्ण, गुड़- गुड़, लवण- सैंधव लवण, राई- राई।

मर्दन संस्कार के द्वारा बाह्य मल नष्ट हो जाता है। इस विधि में ऊपर बताये गए द्रव्यों को पारद का १६वॉ भाग लेकर तप्त खल्व में पारद और कांजी मिलाकर तीन दिनों तक मर्दन करते है।

मूर्च्छन संस्कार :

इस संस्कार के द्वारा पारद का मलदोष, अग्निदोष और विषदोष नष्ट हो जाता है। मलदोष नष्ट करने के लिए घृतकुमारि, विषदोष के लिए चित्रक और अग्निदोष के लिए त्रिफला का उपयोग किया जाता है। इस विधि मे त्रिफला, चित्रक और घृतकुमारि को पारद के १६वे भाग में लेकर और कांजी और पारद तप्त खल्व मे लेकर तब तक मर्दन करते है जब तक वह नष्ट पिष्ट न हो जाये।

उत्थापन संस्कार :

मूर्च्छन संस्कार के बाद मूर्च्छित पारद को पुनः अपने स्वरूप में लाने के लिए उत्थापन संस्कार किया जाता है। इसके लिए सर्वप्रथम पारद को कांजी मे दोलायंत्र विधि से तीन दिनों तक स्वेदन करके उष्ण जल से प्रच्छान करते है। यदि इसके बाद में पारद अपने स्वरूप में न आये तो निम्बू स्वरस से मर्दन करके आतप मे सुखाते है और फिर चूर्ण भाग को फूककर उड़ा देते है और पारद को वस्त्र निष्पीड़न द्वारा प्राप्त करते है। यदि फिर भी पारद अपने स्वरूप में न आये तो उर्ध्व पातन द्वारा उसको अपने स्वाभाविक स्वरूप में लाते है।

पातन संस्कार :

पातन संस्कार तीन प्रकार का होता है – उर्ध्वपातन, अध:पातन और तिर्यकपातन। इस विधि मे सर्वप्रथम पारद का तीन भाग और ताम्र चूर्ण का एक भाग लेकर निम्बू स्वरस से मर्दन करके पिष्टी बनाते है। फिर तैयार पिष्टी को उर्ध्वपातन यंत्र द्वारा सात बार उर्ध्वपातन करते हैं और प्राप्त उर्ध्वपतित पारद को फिर से ताम्र चूर्ण के साथ मिलाकर पिष्टी बनाकर तीन बार अध:पातन करते है। फिर प्राप्त पारद को फिर से ताम्र चूर्ण मिलाकर उसका एक बार तिर्यकपातन करते है। (total = 7+3+1=11)

रोधन / बोधन संस्कार :

रोधन संस्कार के द्वारा पारद का मुखकरण एवं वीर्यउत्कर्ष किया जाता है। इस प्रक्रिया को सृष्टयम्बुज द्वारा किया जाता है (सृष्टयम्बुज = शुक्र, शोणित, मूत्र और सैंधव लवण)। इस विधि म् एक घड़े में एक भाग सैंधव लवण और तीन भाग जल में पारद को तीन दिन तक रखने से उसका वीर्यउत्कर्ष होता है।
नियमन संस्कार :

Trick - " भैंगी औरत , इमली से बांझ हुई, लहसुन + नमक का पान करे । "
भैंगी - भृंगराज, इमली - इमली, बांझ - बाँझककोड़ा, लहसुन - लहसुन, नमक - सैंधव, पान - पानपत्र

नियमन संस्कार द्वारा पारद के चपल दोष की निवृत्ति होती है। इस विधि में ऊपर बताये गए सभी द्रव्यों को पारद का १६वॉ भाग लेकर कल्क बनाकर कांजी में पारद को दोलायंत्र विधि से तीन दिन तक स्वेदन करते हैं।

दीपन संस्कार :

दीपन संस्कार का प्रयोग पारद को बुभुक्षित करने के लिए और मुखकरण करने के लिए किया जाता है। इस विधि में स्फटिक, कासीस, टंकण, काली मरिच, शिग्रु, राई और सैंधव लवण को पारद के १६वे भाग में लेकर कल्क बनाकर कांजी और पारद के साथ दोलायंत्र विधि से तीन दिनों तक स्वेदन करते है।
पारद का सबसे बड़ा दोष होता है असह्याग्नि परंतु विभिन्न संस्कारो द्वारा पारद को थोड़ा अग्नि स्थायी बनाया जाता है जिसमे दीपन संस्कार का सबसे बड़ा महत्व होता है।

Contributor- Medico Eshika Keshari

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