निघण्टु शब्द निगमनात् निगन्तव:इति औषमान्यव से बना है।
निगमनात् शब्द ज्ञान करने के अर्थ में उपयोग किया गया है। निगम ( निश्चित रूप से ज्ञान ) नि उपसर्ग और गम धातु से बना है जिसमे दोनो पदों का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। निगम प्रत्यक्ष पद वृत्ति है। इसके बाद निगन्तु शब्द जो परोक्ष पद वृत्ति है उसमें सिर्फ उपसर्ग और धातु का प्रथम रूप ही स्पष्ट है। इसके बाद निघण्टु शब्द जो अतिपरोक्ष पद वृत्ति है उसमें उपसर्ग मात्रा ही स्पष्ट है और गम् धातु पूर्णत: लुप्त हो गया है।
निघण्टु पर्यायों के माध्यम से द्रव्य का परिचय कराने वाला वैदिक काल का शास्त्र था। निघण्टु का प्रयोग द्रव्यगुण शास्त्र में हुआ।
द्रव्यगुण के निघण्टु ग्रंथों की दो परम्पराये है:
•विशुद्ध पर्याय शैली
•गुणकर्म शैल
संहिता काल के बाद निघण्टुओं द्वारा द्रव्यगुण विषय का ज्ञान हुआ और निघण्टुओं में द्रव्यों का पृथक पृथक वर्णन मिलता है जो की संहिताओं में नहीं मिलता।
सिद्धसार निघण्टु – द्रव्यगुण का परिचय प्रथम इस निघण्टु में मिलता हैं।
• धन्वंतरि निघण्टु
कर्ता – महेंद्र भौगिक
काल – १०- १३ वी शताबदी
वर्ग – ७ वर्ग
धन्वन्तरि वंदना से प्रारंभ होने के करण इसका नाम धन्वन्तरि निघण्टु है। इसको कुछ लोग धन्वन्तरि मुखोद्गीर्णं समझते है किंतु ऐसा नहीं हैं क्योंकि धन्वन्तरि इससे भी पूर्व काल के थे। धन्वन्तरि निघण्टु वास्तव में एक किताब न होकर दो ग्रंथो का मिश्रण है। वे दो ग्रंथ है – द्रव्यावली ( १०वीं शताब्दी ) और धन्वन्तरि निघण्टु ( १३वीं शताब्दी )। इसमे पहले पर्याय शैली और बाद में गुणकर्म शैली का उपयोग मिलता है और बीच मे धन्वन्तरि वंदना की पुनः प्राप्ति होती है जिससे यह साबित होता है कि यह दो ग्रंथो का मिश्रण है। धन्वन्तरि निघण्टु को गुदुच्यादि निघण्टु भी कहा जाता है।
वर्ग – धन्वन्तरि निघण्टु की विषय वस्तु 7 वर्गो में विभाजित है:
Trick–
"गुड़ शीतचंदन कर , आम सुखाकर मिश्र करे"
Meaning-
गुडूच्यादी वर्ग, शतपुष्पादि वर्ग, चन्दनादि वर्ग, करवीरादि वर्ग, आम्रादि वर्ग, सुवर्णादि वर्ग, मिश्रकादि वर्ग
• राज निघण्टु
कर्ता – नरहरि पण्डित
काल – १७ वी शताबदी
वर्ग – १६ वर्ग
द्रव्यगुण को अष्टांग आयुर्वेद में रखकर और उसको प्रथम स्थान देकर द्रव्यगुण की विशेषता बताई है। इस निघण्टु को निघण्टु राज, अभिधान चूड़ामणि, द्रव्याभिधानगणसंग्रह आदि नमो से भी जाना जाता है। इस निघण्टु में द्रव्य नामकरण के 7 आधार बताये गए है-
Trick-
"रूप देख लू वीर्य इतराया"
Meaning–
रूढ़ि, प्रभाव, देशयोक्ति, लांछन, उपमा, वीर्य, इतराह्य।
Trick–
"गुड्डू मिश्रा के पापा , प्रभान शर्मा ने पानी पीकर सुवर्ण की शर्त लगाई कि आम, चंदनमूल, क्षीर, मांस खाओ"
Meaning-
गुडूच्यादि वर्ग, मिश्रकादि वर्ग, पर्पटादि वर्ग, प्रभद्रादि वर्ग, शाल्मल्यादी वर्ग, शाल्यादि वर्ग, पानीयादी वर्ग, पिप्पल्यादि वर्ग, करवीरादि वर्ग, सुवर्णादि वर्ग, श्ताव्ह्यदि वर्ग, आम्रादि वर्ग, चन्दनादि वर्ग, मूलकादि वर्ग, क्षीरादि वर्ग, मांसादि वर्ग
• भावप्रकाश निघण्टु
कर्ता – आचार्य भावमिश्र
काल – १६ वी शताबदी
वर्ग – २२ वर्ग
भावप्रकाश लघुत्रयी की अंतिम ग्रंथ है ( लघुत्रयी – माधव निदान, शाङ्गधर संहिता, भावप्रकाश )। यह निघण्टु विष्णुपद की वंदना से प्रारंभ होता है। द्रव्यगुण शास्त्र में इस निघण्टु का महत्वपूर्ण योगदान है। भावप्रकाश निघण्टु को हरीतक्यादि निघण्टु भी कहा जाता है। इस निघण्टु में कुछ विशिष्ट द्रव्यों का उल्लेख मिलता है जो निम्न है –
द्वीपान्तर वचा, आकारकरभ, चंद्रशूर, छुहारा, पुदीना, मखान्न, कलम्बक, आदि।
वर्ग – भावप्रकाश निघण्टु में 22 वर्ग और 1 अनेकार्थी वर्ग का वर्णन मिलता है:
Trick–
"हरि ने कर्पूर में गुड़ मिलाकर वट के पेड़ पर पुष्प खिलाए आम्र धातु के बर्तन में non veg खिचड़ी में छोंक लगाया । + सुश्रुत के १० द्रव्य + नवनीत"
Meaning–
खिचड़ी means धान्य वर्ग + शाक वर्ग
छोंक means कृतान्न वर्ग
हरितक्यादि वर्ग, कर्पूर वर्ग, गुडुच्यादि वर्ग, वटादी वर्ग, पुष्प वर्ग, आम्रादिफल वर्ग, धातु वर्ग, मांस वर्ग, धान्य वर्ग, शाक वर्ग, कृतान्न वर्ग, + [ वारि वर्ग, क्षीर वर्ग, दधी वर्ग, तक्र वर्ग, घृत वर्ग, तैल वर्ग, मधु वर्ग, इक्षु वर्ग, मद्य वर्ग, मूत्र वर्ग ] + नवनीत वर्ग + अनेकार्थनाम वर्ग
Points to note :-
• आधुनिक निघण्टु :- प्रिय निघण्टु – आचार्य प्रियव्रत शर्मा
• प्राचीन निघण्टु :- अष्टांग निघण्टु
( सोश्रुत निघण्टु सबसे प्राचीन हैं , परन्तु उपलब्ध नहीं हैं । )
• अन्तिम निघण्टु – शालिग्राम निघण्टु
Contributor- Medico Eshika Keshari
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