शिशु के जन्म होते ही परिचर्या के कर्मो का क्रम अलग अलग आचार्यों ने अलग अलग क्रम वर्णन किया है जो निम्न है :
१. चरक संहिता में निम्न ८ परिचर्या के क्रम का वर्णन मिलता है :
Trick – “ PSM पर गर्भ की नजर “
P – प्राण प्रत्यागमन
S – स्नान
M – मुख विशोधन
पर – पिचु धारण
गर्भ – गर्भोदक वमन
न – नालछेदन
ज – जातकर्म
र – रक्षाकर्म
२. सुश्रुत संहिता में निम्न ७ परिचर्या के क्रम का वर्णन मिलता हैं :
Trick – “ उल्लु मुख में पिचु धारण कर न जा अभ्यंग स्नान करने “
उल्लु – उल्वा परिमार्जन
मुख – मुख विशोधन
पिचु धारण – पिचु धारण
न – नालछेदन
जा – जातकर्म
अभ्यंग – अभ्यंग
स्नान – स्नान
३. अष्टाङ्ग ह्रदय में निम्न ८ परिचर्या के क्रम का वर्णन मिलता हैं :
Trick – ” UP ने SP से गर्भ जीता “
U – उल्वा परिमार्जन
P – प्राण प्रत्यागमन
ने – नालछेदन
S – स्नान
P – पिचु धारण
से – सुवर्ण प्राशन
गर्भ – गर्भोदक वमन
जीता – जातकर्म
- प्राण प्रत्यागमन :
प्राण प्रत्यागमन के लिए निम्नलिखित उपयो का संहिताओं में वर्णन मिलता हैं :
• दो पत्थरों को लेकर बालक के कान के पास बजाना
• उष्ण या शीतल जल से मुख परिषेक
• कृष्ण या कपिल सूप से हवा करना
• दक्षिण कान में मंत्रोपचारण करना
आधुनिक मतानुसार शिशु के जन्म के बाद APGAR scoring (appearance, pulse rate, grimace, activity, respiration rate ) की जाती हैं और बच्चों में श्वासावरोध का अंदाज़ा लगाया जाता हैं। - नालछेदन :
आचार्य चरक एवं सुश्रुत ने नाभि नाल कर्तन के लिए नाभि से ८ अंगुल छोड़कर स्वर्ण, चाँदी या किसी भी अन्य धातु से नाल छेदन करना बताया हैं। आचार्य वाग्भट के अनुसार नाभि नाल कर्तन नाभि से ४ अंगुल पर करते हैं। नाभि कर्तन करने के बाद उसपर सूत्र बाँधकर शिशु के कंठ में बाँध देते हैं ताकि वह मल एवं मूत्र से दूषित न हो सके। आधुनिक मतानुसार भी नाभि नाल का कर्तन नाभि से ४ अंगुल पर करते हैं। - मुख शोधन :
मुखशोधन के लिए तालु, ओष्ठ, कण्ठ और जिव्हा को साफ करते हैं और उसके बाद घृत और सैन्धव लवण का पान कराकर वमन कराते हैं। आधुनिक मतानुसार मुख शोधन के लिए श्लेष्मचूसक यंत्र का प्रयोग करते हैं। - गर्भोदक वमन :
गर्भोदक वमन कराने का उद्देश्य ये है कि प्रसव के समय जो शिशु गर्भोदक (amniotic fluid ) का पान कर लेता है उसको बालक के शरीर से निकालने के लिए होता हैं। शिशु को घृत और सैन्धव लवण का पान कराकर वमन कराना चाहिए। - उल्वा परिमार्जन :
उल्वा हटाने के लिए सैन्धव और घृत का प्रयोग करने के बाद फिर बला तैल से अभ्यंग करते हैं। उल्वा को हटाने से बालक को प्रसव के दौरान हुए कष्ट से राहत मिलती हैं। - स्नान :
शिशु को स्नान कराने के लिए सर्वगन्ध युक्त जल या क्षीरीवृक्षकषाय का या स्वर्ण या चाँदी का जल या कपित्थ पत्र कषाय काउपयोग करते हैं। क्षीरी वृक्ष कषय पित्तघ्न होता हैं, सर्वगन्धयुक्त जल वातघ्न होता हैं और कपित्थ पत्र कषाय पित्त कफ नाशक होता हैं। आधुनिक मतानुसार hexachloropene lotion का उपयोग करते हैं। - शिशु में प्रथम आहार विधि :
आचार्य चरक के अनुसार नवजात शिशु को सर्वप्रथम घृत और मधु का पान कराकर प्रथम दिन से ही दक्षिण स्तन का दूध बालक को पिलाना चाहिए। आचार्य सुश्रुत एवं वाग्भट के अनुसार प्रथम दिन बालक को सुवर्ण मिश्रित मधु एवं घृत का 3 बार पान कराना चाहिए और उसके बाद दूसरे और तीसरे दिन लक्ष्मणा सिद्ध घृत का 3 बार पान कराना चाहिए और अंत मे चौथे दिन बालक की हथेली में जितना घृत एवं मधु आये उतना 2 बार पिलाकर स्तन पान कराना चाहिए।
Contributor – Medico Eshika Keshari