नाड़ियां असंख्य बतायी गई है, जो हमारे पूर्ण शरीर में व्याप्त होकर, परस्पर सम्बन्धित रूप से कार्यों का निर्वाहण करती हैं । यह नाड़ियां मन एवं कर्म शक्ति का वहन करती है तथा जाल के सदृश संपूर्ण शरीर में ऊर्ध्व:, अध:, तियर्क होकर सभी अंग प्रत्यंगो में व्याप्त होती है । पृष्ठ वंश ( मेरु ) में तीन नाड़ियां होती हैं। यह ग्रीवा से आरम्भ होकर नीचे की ओर पृष्ठ वंश तक जाती है । शिव संहिता में तीन मुख्य नाड़ियों का वर्णन निम्न प्रकार से करा हैं –

१) इड़ा नाड़ी –

इड़ा नाड़ी का स्थान मेरुदंड के बाहर होता है , इसका उद्भव नाभिकंद में बायी ओर ( वाम ) से होता है एवं यह बायेनासारंध्र पर समाप्त होती है , इसका प्रवाह नीचे की और होता है ( यह नीचे की ओर मुख वाली है ) इसका देवता चंद्रमा है, इसे तमोगुणमयी माना गया हैं । शिव संहिता में इड़ा को यमुना के स्वरूप वाला बताया गया है ।

Trick- ” इड़ा चंद्रमा को देखकर वमन करती है “

२) पिंगला नाड़ी –

इस नाड़ी का स्थान मेरुदंड के बाहर होता है , इसका उद्भव नाभिकंद में दायी ओर से होता है एवं यह दायेनासारंध्र पर समाप्त होती है , इसका प्रवाह ऊपर की ओर होता है ( यह ऊपर की ओर मुख वाली है ) इसका देवता सूर्य है, इसे रजोगुणमयी माना गया हैं । शिव संहिता में पिंगला को सरस्वती के स्वरूप वाला बताया गया है।

३) सुषुम्ना नाड़ी –

इसका स्थान मेरुदंड के मध्य में होता है , इड़ा एवं पिंगला के मध्य सुषुम्ना स्थित हैं यह नाभिकंद के मध्य से ब्रह्मरंध्र पर्यंत है। इसे सत्वगुणमयी माना गया हैं और इसके देवता अग्नि है ।

इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ियों के समागम को ” त्रिवेणी संगम ” कहा जाता हैं। इन नाड़ियों में सदैव प्राण का संचार होता हैं ।

सुषुम्ना के मार्ग में ६ प्रमुख स्थान बताए गए हैं, इन्हे षट चक्र कहा गया है ।

Trick – ” BAMS MA ”

B – विशुद्ध

A – अनाहत

M – मणिपुर

S – स्वाधिष्ठान

M – मूलाधार

A – आज्ञा

षट् चक्र

विशुद्ध

अनाहत

मणिपुर

स्वाधिष्ठान

मूलाधार

आज्ञा

स्थान

कण्ठ

हृदय

नाभि

कटि

गुद एवं उपस्थ

भ्रू मध्य

वर्ण

श्वेत

हरा

पीत

श्वेत

रक्त

श्वेत

विशुद्ध चक्र – इसका स्थान कण्ठ है, यह सत्व गुण वाला एवं श्वेत वर्ण का होता है, यह १६ दल वाला होता है ।

अनाहत चक्र – इसका स्थान हृदय है, यह रजस् गुण वाला एवं हरे वर्ण का होता है, यह १२ दल वाला होता है ।

मणिपुर चक्र – इसका स्थान नाभि है, यह रजस् गुण वाला एवं पीत वर्ण का होता है, इसमें १० दल होते है ।

स्वाधिष्ठान चक्र – इसका स्थान कटि है, यह तमस् गुण वाला एवं श्वेत वर्ण का होता है, यह ६ दल वाला होता है ।

मूलाधार चक्र – इसका स्थान गुद एवं उपस्थ होता है, यह तमस् गुण वाला एवं रक्त वर्ण का होता है, यह ४ दल वाला होता है ।

आज्ञा चक्र – यह भ्रू मध्य के बीच में स्थित होता है, यह सत्व गुण वाला एवं श्वेत वर्ण का होता है, यह २ दल वाला होता है ।

सहस्त्रार चक्र

इन सभी चक्रों के ऊपर एक अन्य सहस्रार चक्र है जो १००० कमल दल के समान है , जिसकी सिद्धि होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है ।

यह जीवात्मा का स्थान है , यह शिव एवं शक्ति के समागम का विशिष्ट स्थान है ।

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