Loading
upras

रसरत्नसमुच्य के अनुसार गंधक, गैरिक, कासीस, फिटकिरी, हरताल, मन: शिला, अंजन और कंकुष्ठ इन आठ द्रव्यों को उपरस की संज्ञा दी हैं । परंतु रसार्णव ने गंधक, गैरिक, कासीस, फिटकिरी, हरताल, मन: शिला, राजावर्त और कंकुष्ठ को उपरस की संज्ञा दी हैं । रसहृदयतंत्र में गंधक, गैरिक, कासीस, स्फटिका, तालक, मन: शिला, अंजन और कंकुष्ठ इन आठों को उपरस की संज्ञा दी हैं । अगर बात करे रसेंद्रचूड़ामणि की तो इसमें गंधक, गैरिक, कासीस, फिटकिरी, हरताल, मन: शिला, सौवीरंजन और कंकुष्ठ इन आठों को उपरस की संज्ञा दी हैं । फिर आयुर्वेदप्रकाश में गंधक, हिंगुल, कासीस, फिटकिरी, हरताल, मन: शिला, अभ्रक, स्त्रोतों अंजन, टंकण, राजावर्त, चुम्बक पत्थर, शंख, खटीका, गैरिक, रसक, कर्पद, सिकता, बोल और सौराष्ट्री इन १९ द्रव्यों को उपरस की संज्ञा दी हैं ।

इसके अलावा कहीं कहीं कंकुष्ठ, वज्त्र, वैक्रांत, भूनाग, शिलाजतु, सिन्दूर, समुद्रफेन और शंबूक को उपरस माना गया है ।

१. गंधक :

शोधन
गंधक द्रवित कर भृंगराज स्वरस से गिराकर फिर उसी रस में आधे घंटे तक स्वेदन कर लेने से गंधक शुद्ध हो जाता है, ऐसा कुल 7 बार करे, और गंधक को द्रवित करते समय भृंगराज स्वरस वाले पात्र के मुख पर कपड़ा बांधे जिससे गंधक छन जाए ।

मात्रा
१-८ रत्ती

२. गैरिक :

शोधन
गोदुग्ध की भावना देने से गैरिक का शोधन हो जाता है ।

मात्रा
२-४ रत्ती

३. कासीस :

शोधन
भृंगराज स्वरस में 1 बार भिगो देने से कासीस का शोधन हो जाता हैं ।

मारण
स्नूहीपत्र स्वरस की भावना दे और जब तक अम्ल रस नष्ट ना हो जाए तब तक पुट दे ।

मात्रा
१/२- २ रत्ती

४. स्फटिका :

शोधन
स्फटिका को लोहे की कढ़ाई में रखकर अग्नि पर फुला देने से इसका शोधन हो जाता है , और स्फटिका बताशे की तरह फूल जाती हैं ।

मारण
लघु पुट दे देने से स्फटिका का श्वेत वर्ण का भस्म प्राप्त होता है ।

मात्रा
२-४ रत्ती

५. हरताल :

शोधन
चूर्णोंदक में दोलायंत्र विधि से स्वेदन करने से इसका शोधन हो जाता है ।

मारण
शुद्ध पत्रताल को पुनर्नवा स्वरस में 1 दिन मर्दन कर चक्रिका बना लें और भस्म यंत्र ( भाण्ड में आधाभाग पुनर्नवा क्षार भरकर बेचोबीच हरताल की चक्रिका रखकर शेष भाग में पुनः पुनर्नवा क्षार भरे ) में रखकर 5 दिन तक अग्नि देकर पाक करने से इसका मारण होता है ।

६. मन: शिला :

शोधन
बिजौरा निम्बू की भावना देने से इसका शोधन हो जाता है ।

मात्रा
१/३२- 1/१६ रत्ती

७. अंजन :

शोधन
भृंगराज स्वरस की भावना देने से इसका शोधन हो जाता है ।

१०. कड्•कुष्ठ :

शोधन
शुण्ठी के क्वाथ की 2 बार भावना देने से इसका शोधन हो जाता है ।

त्रिमल्ल – संखिया और संखिया के योगिकों को त्रिमल्ल के नाम से जाना जाता है, त्रि मतलब तीन , तो त्रिमल्ल के अंतर्गत संखिया, हरताल और मन: शिला का वर्णन होता है।

रसमाणिक्य निर्माण –

दो अभ्रक पत्रों के बीच मे शुद्ध हरताल के चूर्ण को रखकर मंद अग्नि पर पकाएं, जब हरताल का वर्ण गाढ़ा रक्त वर्ण का हो जाए तब इसे अग्नि से पृथक कर दे, और स्वांगशीत होने पर सावधानीपूर्वक रसमाणिक्य को प्राप्त कर लें। इसका उपयोग वातश्लेष्म ज्वर में प्रशस्त माना जाता है।

"इस video के माध्यम से शोधन,मारण समझे और आसानी से याद करे" -

1 Comment

  • Aryan

    August 22, 2021 - 9:38 am

    ????????

Leave A Comment

PNFPB Install PWA using share icon

Install our app using add to home screen in browser. In phone/ipad browser, click on share icon in browser and select add to home screen in ios devices or add to dock in macos

Home
Appointment
Shop
Login